समय

Monday, 6 August 2012

सलाम! ख़ुर्शीद ख़ान!

ख़ुर्शीद ख़ान! तुम्हें सलाम!
इंसानियत के हमराह,
हमारे पड़ोसी, हमारे हमसफ़र,
पदच्युत पाकिस्तानी एटार्नी जनरल!
ख़ुर्शीद ख़ान! सलाम!
तुम्हें बार-बार सलाम!

कभी ईसवी दो हजार दस में,
तालिबानी सिरफिरों ने,
ली थी किसी सिख की जान,
इसके लिए तुम कहाँ थे जिम्मेवार?
फिर यह कैसी प्रायश्चित है, जनरल?
कैसी है यह नयी सत्याग्रही डगर,
वक़्त के लिए अचीन्ही;
हमारे हमसफ़र!

पर तुम्हारे होने में, वज़ूद में तुम्हारे;
इंसानियत का चेहरा
कुछ ज़्यादा सुथरा हुआ सा है, दिखने लगा।
गुरुद्वारों, सुवर्ण मन्दिर, मन्दिरों में,
तुम्हारी 'सेवादारी' यह,
सुबूत है तुम्हारी बेबाक नेकनीयती,
तुम्हारी वज़ादारी का।

तुम्हारी शख़्सियत
मीनारे क़ुतुब से है ऊँची,
कि,
बौना हुआ जाता है
वक़्त का आसमान,
तुम्हारे जज़्बे को सलाम!

शान्तिदूत!
अलग-अलग मुल्कों में
जाने का तुम्हारा संकल्प,
अलग मज़हबों की मुक़द्दस जगहों में,
तुम्हारे भीतर का सेवादार प्रतिबद्ध!
विश्व मानवता का अग्रदूत यह,
दिखायेगा राह,
'स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन्‌ पृथिव्या: सर्व मानवा:'
तुम्हारी विभुता का नमन भूरिश:
युग-कबीर!

कुछ अलग सा है तुम्हारा यह सूफ़ियाना अंदाज़!
पीढ़ियाँ समझ की तसबीह पर,
जपेंगी तुम्हारा नाम, जनरल ख़ान!
हमारे पड़ोसी, हमदम, हमसफ़र!
तुम्हें सलाम! सलाम तुम्हें!
बार-बार सलाम!
ख़ुर्शीद ख़ान!